Friday, December 27, 2019

भारत हर साल कितने लोगों को सज़ा-ए-मौत देता है?

साल 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में क़सूरवार ठहराए गए मुजरिमों को आने वाले कुछ दिनों में फांसी दी जानी है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के अपराधियों में से एक की अपील याचिका ख़ारिज कर दी है.

घृणित अपराध के ज़्यादातर मामलों में भारत की अदालतें सज़ा-ए-मौत का फ़ैसला सुनाती रही हैं लेकिन साल 2015 में याक़ूब मेमन की फांसी के बाद से भारत में किसी को भी फांसी नहीं दी गई है. याक़ूब मेमन को नब्बे के दशक में हुए मुंबई बम धमाकों के लिए क़सूरवार ठहराया गया था.

दुनिया भर में मृत्यु दंड की सज़ा के मामलों को देखें तो भारत के मुक़ाबले दूसरे देशों का रिकॉर्ड कहीं ज़्यादा रहा है.

साल 2018 के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के चार देशों ने- ईरान, सऊदी अरब, वियतनाम और इराक़ ने मृत्यु दंड की सज़ा पर सबसे ज़्यादा अमल किया.

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया भर में मौत की सज़ा के मामलों में कमी आई है और पिछले दशक में तो गिने चुने मामलों में ही किसी को मौत मिली.

साल 2018 में क़त्ल के 45 मामलों में फांसी की सज़ा सुनाई गई थी जबकि रेप के साथ मर्डर के 58 मामलों में मृत्यु दंड का फै़सला सुनाया गया.

देश में राज्यों और केंद्र के क़ानूनों को मिलाकर देखें तो कुल 24 ऐसे क़ानून हैं जिनमें मौत की सज़ा का प्रावधान है.

दिल्ली स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़ 1947 में आज़ादी मिलने के बाद से सबसे ज़्यादा फांसी उत्तर प्रदेश में दी गई है.

आज़ादी के बाद से उत्तर प्रदेश में कुल 354 लोगों को फांसी दी गई जबकि हरियाणा में 90 और मध्य प्रदेश में 73 लोगों की मौत की सज़ा पर अमल हुआ.

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ़ 2018 में ही भारतीय अदालतों ने 162 मामलों में फांसी की सज़ा सुनाई.

साल 2017 की तुलना में ये आंकड़े 50 फीसदी ज़्यादा हैं. बीते दो दशकों में फांसी की सज़ा, पहले कभी इतने अधिक मामलों में नहीं सुनाई गई थी.

यौन अपराध के मामलों में 2017 की तुलना में 2018 में फांसी की सज़ा का आंकड़ा 35 फ़ीसदी बढ़ गया था और इसकी बड़ी वजह संबंधित क़ानूनों में किया गया बदलाव है.

पाकिस्तान में पिछले साल फांसी की सज़ा के आंकड़े 250 से भी ज़्यादा रहे जबकि बांग्लादेश में 229 से ज़्यादा.

लेकिन दुनिया भर के आंकड़ों के लिहाज़ से देखें तो इसमें थोड़ी कमी देखी गई है. एक ओर जहां 2017 में ये आंकड़ा 2591 था तो 2018 में ये आंकड़ा 2531 रहा.

मृत्यु दंड की सज़ा के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी का कहना है कि पिछले साल 690 लोगों की मौत की सज़ा पर अमल किया गया.

उसके पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में ये 30 फ़ीसदी कम था.

साल 2018 में मौत की सज़ा के 80 फीसदी आंकड़ें चार देशों में दर्ज किए गए. ये देशे हैं, ईरान, सऊदी अरब, वियतनाम और इराक़.

हालांकि वियतनाम ने मृत्यु दंड के मामलों पर सार्वजनिक तौर पर प्रतिक्रियाएं कम ही दी हैं लेकिन पिछले साल नवंबर में उसने इस बात की पुष्टि की थी कि उसके यहां 85 लोगों को मौत की सज़ा दे दी गई.

इससे पहले के सालों में वियतनाम में कितने लोगों की मौत की सज़ा मिली, इस बारे में कोई भरोसेमंद जानकारी उपलब्ध नहीं है क्योंकि वहां ये एक सरकारी गोपनीय गतिविधि का हिस्सा माना जाता है.

पिछले साल की तुलना में एशिया प्रशांत के देशों में मृत्यु दंड के मामलों में 46 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. जापान में 15, पाकिस्तान में 14 और सिंगापुर में 13 लोगों को सज़ा-ए-मौत दी गई.

साल 2009 के बाद से थाईलैंड में मौत की सज़ा एक तरह से बंद कर दी गई थी लेकिन अब वहां फिर से मृत्यु दंड दिया जाने लगा है.

अमरीका की तरफ़ देखें तो साल 2017 के 23 के आंकड़ें की तुलना में पिछले साल वहां 25 लोगों की सज़ा-ए-मौत पर अमल हुआ.

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